शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday 18 September 2013

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी - खालसा पंथ की साजना

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी - खालसा पंथ की साजना










श्री गुरु गोबिंद सिंह जी - खालसा पंथ की साजना



पाँच प्यारों का चुनाव करना

वैसाखी संवत १७४६ वाले दिन एक बहुत बड़े पंडाल में गुरु जी का दीवान सजा| सभी संगत एकत्रित हो गई| संगत आप जी के वचन सुन ही रही थी कि गुरु जी अपने दाँये हाथ में एक चमकती हुई तलवार ले कर खड़े हो गए|

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने ऊँची आवाज में कहा कि कोई सिख हमे अपना शीश भेंट दे|आप जी के यह वचन सुनकर भाई दया राम जी उठ कर खड़े हो गए और प्रार्थना कि गुरूजी मेरा शीश हाजिर है|गुरु जी बाजू पकड़कर तम्बू में ले गए| कुछ समय के बाद रक्त से भीगी तलवार लेकर तम्बू से बाहर आ गए|

गुरु जी ने फिर एक और सिख के शीश कि मांग की| फिर भाई धर्म जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए| उसे भी गुरु जी हाथ पकडकर अंदर ले गए|खून से भीगी तलवार लेकर गुरु जी ने फिर से शीश की माँग की|

अब मुहकम चंद जी व चौथी बार भाई साहिब चंद जी आये| गुरु जी ने फिर वैसे ही किया|हाथ पकड़कर अंदर ले गए व फिर खून से भीगी तलवार लेकर शीश की माँग| अब पांचवी बार हिम्मत मल जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए| गुरु जी उन्हें भी अंदर ले गए|

गुरु जी ने तलवार को म्यान में डाल दिया और सिंघासन पर बैठ गए| तम्बू में ही पाँच शीश भेंट करने वाले प्यारों को नयी पोशाकें पहना कर अपने पास बैठा कर संगत को कहा की यह पाँचो मेरा ही स्वरूप है और मैं इनका स्वरूप हूँ| यह पाँच मेरे प्यारे है|


अमृत तैयार करके छकाना
तीसरे पहर गुरु जी ने लोहे का बाटा मँगवा कर उसमें सतलुज नदी का पानी डाल कर अपने आगे रख दिया| पाँच प्यारों को सजा कर अपने सामने खड़ा कर लिया| फिर अपने बांये हाथ से बाटे को पकड़कर दाँये हाथ से खंडे को जल में घुमाते रहे|मुख से जपुजी साहिब आदि बाणियो का पाठ करते रहे|पाठ की समाप्ति के बाद अरदास करके पाँच प्यारों को बारी-२ पहले अमृत के पाँच-पाँच घूँट पिलाये| फिर पाँच-२ बार हरेक की आँखों पर इसके छींटे मारे| पाँच-२ घूँट हरेक के केशों में डाले|हर बार बोल " वाहिगुरू जी का खालसा वाहिगुरू जी की फतह " पहले आप कहते और पीछे-२ अम्रृत पीने वाले को कहलाते|

इस तरह गुरु जी ने अमृत पिला कर हरेक प्यारों को सिंह पद प्रदान किया जैसे-
१. भाई दया सिंह जी
२. भाई धर्म सिंह जी
३. भाई मुहकम सिंह जी
४. भाई साहिब सिंह जी
५. भाई हिम्मत सिंह जी

इस तरह पाँच प्यारों को हर प्रकार की शिक्षा से तयार करके गुरु गोबिंद जी ने उनसे आप अमृत छका और अपने नाम के साथ भी श्री गोबिंद राय से श्री गुरु गोबिंद सिंह जी कहलाये|


जिस स्थान पर आप जी ने यह सारा कौतक रचा, उसका नाम केशगढ़ रखा| जो इस समय तख़्त केसगढ़ के नाम से आनंदपुर साहिब में सुशोभित है|

इस सारे उत्साह भरपूर चरित्र को देखकर और भी हजारों सिक्खों ने खंडे का अमृत छककर सिंह सज गए| सब सिखों ने अमृत छक कर पाँच ककार की रहत धारण करके अपने नाम के साथ "सिंह" रख लिया|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.