शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

************************************

निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

************************************

Friday 22 November 2013

महर्षि वाल्मीकि जी

ॐ साँई राम जी




महर्षि वाल्मीकि जी

महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रैता युग में अस्सू पूर्णमाशी को एक श्रेष्ठ घराने में हुआ| आप अपने आरम्भिक जीवन में बड़ी तपस्वी एवं भजनीक थे| लेकिन एक राजघराने में पैदा होने के कारण आप शस्त्र विद्या में भी काफी निपुण थे|

आप जी के नाम के बारे ग्रंथों में लिखा है कि आप जंगल में जाकर कई साल तपस्या करते रहे| इस तरह तप करते हुए कई वर्ष बीत गए| आपके शरीर पर मिट्टी दीमक के घर की तरह उमड़ आई थी| संस्कृत भाषा में दीमक के घरों को 'वाल्मीकि' कहा जाता है| जब आप तपस्या करते हुए मिट्टी के ढेर में से उठे तो सारे लोग आपको वाल्मीकि कहने लगे| आपका बचपन का नाम कुछ और था, जिस बारे कोई जानकारी पता नहीं लगी|

भारत में संस्कृत के आप पहले उच्चकोटि के विद्वान हुए हैं| आप जी को ब्रह्मा का पहला अवतार माना जाता है| प्रभु की भक्ति एवं यशगान से आपको दिव्यदृष्टि प्राप्त हुई थी और आप वर्तमान, भूतकाल तथा भविष्यकाल बारे साब कुछ जानते थे| श्री राम चन्द्र जी के जीवन के बारे आप जी को पहले ही ज्ञान हो गया था| इसलिए आप जी ने श्री राम चन्द्र जी के जीवन के बारे पहले 'रामायण' नामक एक महा ग्रंथ संस्कृत में लिख दिया था| बाद में जितनी भी रामायण अन्य कवियों तथा ऋषियों द्वारा लिखी गई है, वह सब इसी 'रामायण' को आधार मानकर लिखी गई हैं|

जब महर्षि वालिमिकी को 'रामायण' की कहानी का पूर्ण ज्ञान हो गया तो आप जी ने एक दिन अपने एक शिष्य को बुलाया तथा तमसा नदी के किनारे पर पहुंच गए| इस सुन्दर नदी पर वह पहली बार आए थे| वह नदी के तट पर चलते-चलते बहुत दूर निकल गए| अंत में वह नदी के एक तट पर जाकर रुक गए|

नदी का वह किनारा बड़ा सुन्दर तथा हरा-भरा था| नदी का सुन्दर किनारा और निर्मल जल देखकर वालिमिकी जी बहुत प्रसन्न हुए| निर्मल जल को देखकर वह नदी पर स्नान करने गए| स्नान करते-करते वह उस जंगल में पहुंच गए जहां एक पेड़ पर बैठे चकवा चकवी प्रेम रस में डूबे हुए थे|

चकवा चकवी प्रेम करते बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे थे| वाल्मीकि जी अभी उनकी तरफ देख ही रही थी कि एक शिकारी उधर आ निकला|

उसने चकवे की हत्या कर दी| अपने प्यारे पति को तड़पता देखकर चकवी बहुत दुखी हुई तथा विलाप करने लग गई| शिकारी के निंदनीय कार्य को देखकर महर्षि वाल्मीकि बहुत क्रोधित हो गए| उन्होंने एक श्लोक संस्कृत में उच्चारण किया जिसका भाव था, 'हे शिकारी तूने जो प्रेम लीला कर रहे चकवे के प्राण लिए हैं इस कारण तेरी शीघ्र ही मृत्यु हो जाएगी तथा तेरी पत्नी भी इसी तरह दुखी होगी|'

वाल्मीकि जी के मुख से यह वचन स्वाभाविक ही निकल गए| फिर वह सोचने लगे कि मैं पक्षियों का दुःख देखकर यह सारा श्राप युक्त वचन क्यों कर बैठा| लेकिन जब अपने कहे हुए उत्तम तथा अलंकारक श्लोक की तरफ देखा तो बड़े प्रसन्न हुए| वह उस श्लोक को दोबारा गाने लगे| फिर उन्होंने अपने शिष्य भारद्वाज को कथन किया कि वह इस श्लोक को कंठस्थ कर ले ताकि इसे भूल न जाए| शिष्य भारद्वाज ने उस समय यह श्लोक कंठस्थ कर लिया|

इस तरह मासूम पक्षी की मृत्यु ने महर्षि वाल्मीकि के मन पर वेरागमयी प्रभाव डाला| पक्षी के तड़पने, मरने तथा मरने से पहले प्रेम लीला की झांकी महर्षि की आंखों से ओझल नहीं हो रही थी| इस विचार में डूबे हुए वाल्मीकि अपने आश्रम में आ पहुंचे|

लेकिन आश्रम में आकर भी आप उस श्लोक को मुंह में गुणगुनाने लगे| आप जी को दिव्यदृष्टि द्वारा जो श्री रामचन्द्र जी का जीवन चरित्र ज्ञात हुआ था, आप जी ने मन बनाया कि क्यों न उस श्लोक की धारणा में श्री रामचन्द्र जी का जीवन चरित्र लिख दिया जाए|

यह विचार बनाकर महर्षि वाल्मीकि जी सुन्दर ज्ञानवर्धक श्लोकों वाली 'रामायण' लिखने लगे| ऊंचे ख्यालों वाले शब्द, पिंगल तथा व्याकरण एवं नियम-उपनियम अपने आप उनके पास इकट्ठे होने लगे| फिर महर्षि वाल्मीकि जी जब अन्तर-ध्यान हुए तो श्री रामचन्द्र, लक्ष्मण, सीता, दशरथ, कैकेयी, माता कौशल्या तथा हनुमान आदि मुख्य पात्रों के बारे सारे छोटे से छोटे हाल का भी सूक्ष्म ज्ञान हो गया| यहां तक कि श्री रामचन्द्र जी का हंसना, बोलना, मुस्कराना, तथा खेलना भी कानों में सुनाई देने लगा| आंखें उनके वास्तविक स्वरूप को देखने लगीं| सीता तथा श्री रामचन्द्र जी के जो संवाद वन में होते रहे महर्षि जी को उनका भी ज्ञान होता गया| जो भी घटनाएं घटित हुई थीं, वे याद आ गईं|

फिर महर्षि वाल्मीकि जी ने अपने शिष्यों के पास से बेअंत भोज पत्र मंगवाए तथा उनके ऊपर लिखना शुरू कर दिया जो बहुत मनोहर हैं तथा सम्पूर्ण रचना को सात कांडों सात सौ पैंतालीस सरगों तथा चौबीस हजार श्लोकों में विभक्त किया गया है|

जब महर्षि वाल्मीकि रामायण का मुख्य भाग लिख चुके थे तो सीता माता श्री रामचन्द्र की ओर से वनवास दिए जाने के कारण उनके आश्रम में आई| आप जी ने अपने सेवकों को सीता माता को पूरे आदर-सत्कार से रखने के लिए कहा| कुछ समय के बाद सीता माता के गर्भ से दो पुत्रों ने जन्म लिया| उन पुत्रों के नाम लव तथा कुश रखे गए| महर्षि ने उन बच्चों के पालन-पोषण का विशेष ध्यान रखा| अल्प आयु में ही उनकी शिक्षा शुरू कर दी| महर्षि वाल्मीकि स्वयं लव एवं कुश को पढ़ाते थे| बच्चों को संस्कृत विद्या के साथ-साथ संगीत तथा शस्त्र विद्या भी दी जाती थी| वाल्मीकि लव एवं कुश को रामायण भी पढ़ाने लगे|

वह दोनों बालक शीघ्र ही संस्कृत के विद्वान, संगीत के सम्राट बन गए| वे शस्त्र विद्या में भी काफी निपुण हो गए| महर्षि ने सोचा कि इन बालकों के द्वारा राम कथा को जगत में प्रचारित किया जाए| उन बालकों को वाल्मीकि ने राम कथा मौखिक याद करने के लिए कहा| बालकों लव कुश ने कुछ समय में ही चौबीस हजार श्लोक कंठस्थ कर लिए| वह अपने मीठे गले तथा सुरीली सुर में रामायण गाने लगे| उन्होंने दो सात सुरों वाली वीणाएं लीं तथा राम कथा का गुणगान करने लगे|

जब वह गायन कला में परिपूर्ण हो गए तो वाल्मीकि जी ने उनको आज्ञा दी की वह दूर-दूर जाकर उस उच्च तथा कल्याणकारी काव्य का प्रचार करें| दोनों राजकुमार जो श्रीराम चन्द्र जी के समान सुन्दर, विद्वान तथा बलशाली थे, ऋषियों, साधुओं तथा जनसमूह में जाकर रामकथा का गायन किया करते थे| उनके सुरीले गान ने काव्य को ओर ऊंचा कर दिया| जब वह गाते तो श्रोता बहुत प्रसन्न एवं वैरागमयी हो जाते| सब के नेत्रों में श्रद्धा, हमदर्दी तथा भक्ति के नीर बहने लग जाते| प्रत्येक नर-नारी उनकी उपमा करके बालकों लव कुश के पीछे-पीछे चल पड़ते| लव कुश केवल उस काव्य का गायन ही नहीं कर रहे थे बल्कि एक नया संदेश भी दे रहे थे| भूतकाल की घटनाएं वर्तमान काल की घटनाएं प्रतीत हो रही थीं| लव तथा कुश रामकथा का गायन करके वापिस महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम में आ जाया करते थे| वह अपनी माता सीता जी का बहुत सत्कार करते थे|

उन दिनों में ही श्री रामचन्द्र जी ने चक्रवर्ती राजा बनने के लिए अश्वमेध यज्ञ करने का फैसला किया| उन्होंने यज्ञ के लिए एक घोड़ा छोड़ा तथा ऐलान किया कि जो इस घोड़े को पकड़ेगा, उसे लक्ष्मण के साथ युद्ध करना होगा| लक्ष्मण एक बड़ी सेना लेकर घोड़े के पीछे-पीछे जा रहा था| जब यह घोड़ा महर्षि वाल्मीकि के आश्रम के निकट पहुंचा तो लव कुश ने उस घोड़े को पकड़ लिया तथा अपने आश्रम आकर एक पेड़ के साथ बांध दिया| जब लक्ष्मण सेना लेकर निकट आया तो उसने बालकों को घोड़ा छोड़ने के लिए कहा| लेकिन लव कुश ने मना कर दिया ओर कहा, "हमें यह घोड़ा बहुत पसंद है, हम इसकी सवारी किया करेंगे, आप कोई अन्य घोड़ा छोड़ दीजिए|" लेकिन लक्ष्मण ने उनको समझाया कि 'यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा है जो भी इस घोड़े को पकड़ेगा, उसे हमारे साथ युद्ध करना पड़ेगा|" पर बालक आगे से कहने लगे, "हम युद्ध करने को तैयार हैं लेकिन हम घोड़ा नहीं छोड़ेंगे|"

लक्ष्मण ने उनको युद्ध के लिए तैयार होने के लिए कहा| वह बालक भी महर्षि वाल्मीकि जी से युद्ध विद्या का ज्ञान प्राप्त कर चुके थे तथा जो योद्धा ब्रह्मज्ञानी वाल्मीकि से युद्ध विद्या ग्रहण कर चूका हो, वह भला कैसे हार सकता है| इसलिए दोनों बालक तीर कमान लेकर तथा कवच पहन कर घोड़ों पर सवार होकर मैदान में आ गए| लक्ष्मण की सेना के सामने डटकर उन्होंने निर्भीकता से कहा, "यदि आप में हिम्मत है तो हमारे ऊपर हमला करो|"

लक्ष्मण ने एक तीर छोड़ा जिसे लव ने अपने तीर से ही रोक लिया| फिर लव कुश ने तीरों की ऐसी वर्षा की कि लक्ष्मण की सेना वहीं पर ढेर हो गई| लक्ष्मण यह चमत्कार देखकर बड़ा हैरान हुआ, वह फिर बालकों को समझाने लगा| लेकिन लव कुश ने लक्ष्मण को वही मार दिया|

लक्ष्मण की हार के बारे में जब श्री राम चन्द्र जी को पता लगा तो उन्होंने शत्रुघ्न को एक बड़ी फौज देकर रणभूमि में भेजा| लेकिन शत्रुघ्न भी दोनों बालकों का मुकाबला न कर सका तथा पराजित हो गया| उसे भी महर्षि वाल्मीकि के शिष्यों ने धरती पर धूल चटा दी|

शत्रुघ्न की हार का समाचार सुनकर श्री रामचन्द्र जी ने भरत को भेजा| भरत ने पहले आकर लव कुश को बहुत समझाया लेकिन बालकों के ऊपर इसका कोई असर न हुआ| उन्होंने भरत की भी सारी सेना को मार डाला तथा भरत भी मूर्छित होकर गिर पड़ा|

फिर श्री रामचन्द्र भी स्वयं सेना लेकर आए| वह ऐसे शूरवीर बालकों को देख कर बहुत खुश हुए| उन्होंने बालकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनको घोड़ा छोड़ने के लिए कहा| पर बालकों ने उनकी बात की तरफ कोई ध्यान न दिया तथा युद्ध आरम्भ कर दिया| कुछ ही समय में श्री रामचन्द्र जी की सेना मार फेंकी|

अंत में उन्होंने श्री रामचन्द्र जी को भी घायल कर दिया| पूर्ण तौर पर विजय प्राप्त करके लव-कुश माता सीता को मिलने गए तथा कहा कि उन्होंने भारत के सर्वश्रेष्ठ राजा को पराजित कर दिया है तथा अब सारे देश के मालिक बन गए हैं| जब सीता माता ने यह बात सुनी तो उनको शक हुआ कि इस देश के राजा तो श्री रामचन्द्र जी हैं, इन्होने कहीं अपने पिता जी को ही न पराजित कर दिया हो| वह उसी समय रणभूमि पर उस रजा को देखने गई| जब उन्होंने श्री रामचन्द्र जी को घायल अवस्था में मूर्छित देखा तो ऊंची-ऊंची रोने लग पड़ी और कहा कि तुम दोनों ने मेरा सुहाग मुझ से छीन लिया है| यह बात सुनकर बालक बड़े हैरान हुए| फिर सीता माता ने परमात्मा के आगे प्रार्थना की कि यदि मैं पतिव्रता स्त्री हूं तो प्रभु मेरे सुहाग को जीवन दान दें| महर्षि वाल्मीकि जी को भी सारी बात का पता लग गया| उन्होंने श्री रामचन्द्र जी के मुंह पर पवित्र जल के छींटे मारे तो वह उठ कर बैठ गए| अपने पास दो शूरवीर बालकों, सीता तथा महर्षि वाल्मीकि जी को देख कर बहुत हैरान हुए| महर्षि जी ने फिर उनको सारी बात समझाई| श्री रामचन्द्र जी ने सीता माता का धन्यवाद किया तथा अपने दो शूरवीर पुत्रों को देख कर बहुत खुश हुए| फिर उन्होंने महर्षि वाल्मीकि जी को कहा कि अपनी कृपा दृष्टि से मेरे दूसरे भाईयों और सेना को भी जीवन दान की कृपा करें| सीता माता ने फिर प्रार्थना की तो रामचन्द्र जी के सारे भाई तथा सैनिक जीवित होकर उठ खड़े हुए| फिर श्री रामचन्द्र जी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गए तथा सीता ओर बालकों को साथ ले जाने की इच्छा प्रगट की| वाल्मीकि जी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ ले जाने की इच्छा प्रगट की| वाल्मीकि जी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ सीता माता तथा बालकों को उनके साथ जाने की आज्ञा दे दी| दोनों बालक ओर सीता माता अयोध्या पहुंच गए| जब सारे नगर वासियों को पता लगा तो उन्होंने बहुत खुशियां मनाईं| शूरवीर बालकों को देखने के लिए सारा नगर उमड़ आया|

लव और कुश जिन को राम कथा सम्पूर्ण मौखिक याद थी उन्होंने सारी कथा सुरीली मधुरवाणी में नगर वासियों को सुनाई| श्री रामचन्द्र जी अपनी सारी जीवन कथा सुन कर धन्य हो गए| उन्होंने महर्षि वाल्मीकि कृत इस अमर कथा को सुन कर कहा, "जब तक यह दुनिया रहेगी महर्षि वाल्मीकि जी की यह कथा चलती रहेगी, धन्य हैं महर्षि वाल्मीकि जी, उनकी सदा ही जै होगी|"

वाल्मीकि जी ने बाद में उत्तराकांड लिखा| इस तरह वाल्मीकि जी एक उच्चकोटि के विद्वान तथा शस्त्रधारी शूरवीर थे| उनमें एक अवतार वाले सारे गुण विद्यमान थे| आज अगर संसार श्री रामचन्द्र जी को कहानी को जानता है तो वह केवल महर्षि वाल्मीकि जी की मेहनत के फलस्वरूप| उन्होंने अपने जीवन के कई साल उनकी जीवन गाथा को ब्यान करने में लगा दिए|

For Donation

For donation of Fund/ Food/ Clothes (New/ Used), for needy people specially leprosy patients' society and for the marriage of orphan girls, as they are totally depended on us.

For Donations, Our bank Details are as follows :

A/c - Title -Shirdi Ke Sai Baba Group

A/c. No - 200003513754 / IFSC - INDB0000036

IndusInd Bank Ltd, N - 10 / 11, Sec - 18, Noida - 201301,

Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.